Book Title: Jain Darshan me Nayvad
Author(s): Sukhnandan Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ नय-स्वरूप, प्रमाण और नय में अन्तर, सुनय-दुर्नय निक्षेप-उपयोगिता, स्वरूप व भेद-प्रभेद अनेकान्त और स्यादवाद-अवधारणा __ 1. अनेकान्त का प्रतिपादक स्याद्वाद 2. स्याद्वाद का व्युत्पत्तिपरक लक्षण 3. समन्वय का सिद्धान्त सप्तभंगीवाद-उपयोगिता एवं स्वरूप भेद-प्रमाण, नय 3. नयों का समन्वयवादी दृष्टिकोण 196 4. नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद. 213 नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण नयों के भेद-प्रभेद प्रथम प्रकार- ज्ञाननय, शब्दनय, अर्थनय द्वितीय प्रकार- द्रव्यार्थिक नय, पर्यायार्थिक नय तृतीय प्रकार- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नैगमादि मे कार्य-कारणता तथा सूक्ष्माल्प-विषयता 5. नयों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद 250 नयों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण अध्यात्म प्रतिपादक निश्चय और व्यवहार नय निश्चय और व्यवहार शब्दों का व्युत्पत्त्यर्थ निश्चय और व्यवहार नय का स्वरूप तथा उनकी उपयोगिता निश्चय और व्यवहार नय के भेद-प्रभेद 6. अध्ययन का निष्कर्ष 282 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 300