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अनिबद्ध-मंगल-किसी भी ग्रथ के प्रारभ में ग्रथकार के द्वारा भगवान को नमस्कार तो किया गया हो पर उसे किसी श्लोक आदि के रूप मे लिपिवद्ध न किया गया हो तो यह अनिबद्ध-मगल है। अनिवृत्तिकरण-जिस विशिष्ट आत्म-परिणाम के द्वारा जीव मिथ्यात्व की ग्रंथि को भेदकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है वह अनिवृत्तिकरण कहलाता है। अनिवृत्तिकरण-गुणस्थान-जिस गुणस्थान मे विवक्षित किसी एक समय मे विद्यमान सब जीवो के परिणाम परस्पर समान हो वह अनिवृत्तिकरण नामक नौवा गुणस्थान है। अनिष्ट (अभक्ष्य)-जिनके सेवन से वात, पित्त, कफ आदि विकार उत्पन्न हो वे पदार्थ अनिष्टकर होने से अभक्ष्य है। अनिष्टसंयोगज-आर्तध्यान-अप्रिय वस्तु या व्यक्ति के सयोग से निरतर चिन्तित या दुखी रहना अनिष्टसयोगज-आर्तध्यान है। अनिसृष्ट-गृहस्वामी आहार दान की इच्छा करे और अन्य लोग मना करे तो दिया गया आहार अनिसृष्ट दोष से युक्त है। अनिस्सरणात्मक-तैजस-जीव के औदारिक शरीर मे रोनक लाने वाला अनिस्सरणात्मक तैजस शरीर है। यह अन्न-पान आदि को पचाने मे सहायक होता है और औदारिक आदि शरीर के भीतर स्थित रहता है। अनिलव-जिस गुरु या शास्त्र से ज्ञान प्राप्त किया है उसका नाम नहीं छिपाना अनिहव है। अनुकम्पा-दूसरे की पीडा से द्रवित हो जाना अनुकम्पा कहलाती है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 13