Book Title: Jain Bal Shiksha Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 12
________________ 'क्यों नहीं कर सकता ! उसके तो आँख, कान, मुँह आदि असली हैं, बनावटी नही हैं।' . - 'आँख-कान आदि असली हैं, बनावटी नहीं हैं, आपकी यह बात ठीक है परन्तु जो मुर्दा हो जाता है, उसमें जान नहीं रहती, इसलिए वह आँख-कान आदि के होते हुए भी उनसे काम नहीं ले. सकता। बेजान चीज, जानदारों की तरह काम नहीं कर सकती।' जितेन्द्र ! अब की बार तूने पते की बात कही है। बेजान चीज जानदारों की तरह हरकत नहीं कर सकती, यह बात बिल्कुल सही है। बेटा तब तो रबड़ की गुड़िया भी बेजान होने से ही देखना-सुनना आदि नहीं कर सकती। बनावटी और असली आँख-कान आदि का तो अब कोई प्रश्न नहीं रहा और यही बात तुम्हारी दवात और कलम की बाबत भी है। वे भी बेजान हैं, इसलिए देख, सुन, चल-फिर नहीं सकतीं। 'जी हाँ, आपका कहना बिल्कुल सही है ।' तो अब तुम अपने आप ही समझ गये हो। देखो जिनमें, जान हैं, जो जानदार हैं, वे 'जीव' कहलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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