Book Title: Jain Bal Shiksha Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 42
________________ - ( ३७ ) सकते, तो किसी अन्य जीवित प्राणी, का कबूतर जितना माँस दिला दें। मुझे ताजा मांस चाहिए, बासी नहीं।" राजा ने कहा-"यह कैसे हो सकता है कि कबूतर बचाऊँ और दूसरे किसी जीव को मारूँ ! और जो चाहो, ले लो, किन्तु किसी दूसरे प्राणी का मांस नहीं दे सकता। जानते हो, किसी जीव को मारना और मांस खाना, कितना बुरा है। अगर मांस ही लेना है तो मैं अपनी देह का मांस दे सकता हूँ।" __ बहेलिए ने कहा- “महाराज यह क्या करते हो? जरा से कबूतर के लिए अपना मांस देना चाहते हो ? जरा विचार कर काम कीजिए।" राजा को मन्त्रियों ने और प्रजा के लोगों ने भी बहुत समझाया। परन्तु वह दयावीर कब मानने वाला था। बहेलिया मांस की अड़ लगाये रहा, और राजा ने किसी दूसरे जीव का मांस देना न चाहा। कबूतर की रक्षा के लिए राजा अपने प्राणों पर खेलने को तैयार हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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