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पिता के यहाँ चली मेरे कारण वन में दुःख पा रही
न पावेगी तो अपने व्यर्थ ही मेरे
जायगी ।
है । '
राजा नल के चले जाने पर दमयन्ती की नींद खुली। वह जंगल में अकेली नल को खोजती फिरी और तरह-तरह के कष्ट उठाती रही। वह बड़ी साहस वाली स्त्री थी। आखिर जब उसके पिता भीम को मालूम हुआ तो उसने दमयन्ती को बड़े प्रेम से अपने पास बुला लिया।
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उधर राजा नल दधिपर्ण राजा के यहाँ गुप्तरूप से सारथी बनकर रहने लगा। उस युग में नल के समान दूसरा कोई घोड़ों को तेज चलाने में निपुण नहीं था, नल को प्रकट करने के लिए दमयन्ती का फिर से जाली स्वयंवर रचा गया। जानबूझ कर समय इतना थोड़ा रक्खा गया कि नल कें समान चतुर सारथी ही वहाँ इतनी जल्दी पहुँच सकता था। आखिर, राजा नल दमयन्ती के लिए प्रकट हो गए · अयोध्या में आकर राज्य करने लगे। बाद की अवस्थ
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