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गुरु-वन्दना
तिक्खुत्तो
करेमि।
वंदामि,
आयाहिणं, पयाहिणं नमंसामि, सक्कारेमि, मंगलं,
सम्माणेमि।
कल्लाणं
देवयं,
चेइयं।
पज्जुवासामि,
मत्थएण
वंदामि।
यह पाठ गुरुदेव की वन्दना करने के समय बोला जाता है। जैन साधु और जैन साध्वी, जैन । धर्म में गुरु माने गये हैं। जैन धर्म में खाली कंठी बाँध कर भेंट-पूजा और चढ़ावा लेने वाले को गुरु नहीं मानते।
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