Book Title: Jain Bal Shiksha Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 24
________________ ( १९ > 'जी नहीं, ठण्डी होती है ।' 'अच्छा, आग कैसी होती है ?' 'आग गर्म होती है ।' 'लोहा और रुई कैसे 'लोहा भारी और रुई 'कभी ईंट और शीशे पर होते हैं ?' होते हैं ?' हल्की होती है।' जी हाँ. कितनी ही बार। होता है। हाथ फेरा है, 'ईंट खुरदरी और शीशा चिकना होता है।' कभी गले पर सोये सोये हो ?' 'क्या तुम Jain Education International गदेला बड़ा कैसे ?' 'अच्छा, यह बाताओ, पत्थर कैसा होता है 'अजी, पत्थर तो बहुत कड़ा होता हैं हो। अच्छा, एक बात ।' 'तुम बहुत समझदार और बताओ। बर्फ को ठण्डा, आर्ग को गर्म लोहे को भारी-रुई को हल्की, ईंट को खुरदरी, शीशे को चिकना, गदेले को नरम और पत्थर को कड़ा तुमने कैसे जाना ? किस चीज से जाना ?' . For Private & Personal Use Only नरम www.jainelibrary.org

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