Book Title: Hem Sangoshthi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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७० हेमचन्द्र के (पी. एल. वैद्य संस्करण) व्याकरण में उपलब्ध शब्द-दाडिम, दालिम, गरुल (8.1.202) आमेल (8.1.105,202, 234)।
वररुचि के (प्राकृत प्रकाश में कोवेल के संस्करण) अनुसार - आमेल (2.16) ।
प्राकृत काव्य साहित्य और रूपक साहित्य के कुछ संस्करणों में अभी भी ळकार का प्रयोग मिलता है । मूल ळकार का डकार या लकार में बदलने के दो कारण प्रतीत होते हैं, एक तो उच्चारण के कारण 'ळ' का 'ड' हो गया और दूसरा कारण यह कि 'ळ' और 'ल' दोनों अक्षरों में लिपि-दोष से 'ळ' का 'ल' हो गया क्योंकि लेखन में उन दोनों अक्षरों में बहुत कम अन्तर है।
इसी कारण प्राकृत व्याकरणकारों को 'ल=ळ' और 'ड = ल' के सूत्र बनाने पडे होंगे ऐसा कहना अनुपयुक्त नहीं होगा ।
__ळकार की चर्चा यहाँ पर इसलिए की गयी है कि इसका प्रयोग बन्द कर देने से अर्धमागधी भाषा का एक प्राचीन लक्षण लुप्त हो गया और उसकी प्राचीनता घट गयी । शौरसेनी भाषा
शौरसेनी सम्बन्धी हैमव्याकरण में 27 सूत्र हैं जबकि प्राकृत-प्रकाश में 32 सूत्र मिलते हैं । इस भाषा के विषय में दोनों में जो अन्तर है वह नीचे दर्शाया जा रहा है। (हेमचन्द्र के अनुसार
(वररुचि के अनुसार सामान्य प्राकृत के अन्तर्गत)
शौरसेनी के अन्तर्गत) 1. व्यापृत =वावड 8.1.206 1. 12.4 2. गृद्धि = गिद्धि 8.1.128 2. (गृद्ध = गिद्ध) 12.6 3. सर्वज्ञः = सव्वण्णू 8.2.83 3. सव्वण्णो 12.8 4. इव = विअ 8.2.182
4. 12.24 5. आश्चर्य = अच्छरिअ
5. 12.30 8.1.58, 2.66 6. वयं (वयम्, प्र. पु. ब. व.) 6 व 12.25
8.3.106 7. स्था = चिट्ठ 8.4.16 | 7. 12.16 8. स्मृ = सुमर 8.4.74 | 8. 12.17
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