Book Title: Hem Sangoshthi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 106
________________ "सुयंमेआउसंतेणंभगवयाएवमक्खायं" आचा. 1.1.1:1 अद्यपर्यन्त इस वाक्य में से शब्द-विच्छेद निम्न दो प्रकार से ही किया गया है -- 'आउसं तेणं' और 'आउसंतेणं' परंतु तीसरे प्रकार से शब्द-विच्छेद इस प्रकार भी होगा - 'आउसंते णं' सूत्रकृतांग की चूर्णि में जो नया प्रमाण 'आउसे' मिला है उस संदर्भ में 'आउसन्ते' रूप ही प्राचीन है और मगध देश की मागधी भाषा का है जहाँ पर भगवान महावीर ने उपदेश दिये थे। कालान्तर में यह मूल प्रयोग भुला दिया गया और उसके स्थान पर अन्य दो प्रयोग 'आउसं तेणं' और 'आउसंते णं' प्रचलित हो गये और फिर खींच-तान कर उनका अर्थ समझाया जाने लगा। अतः ‘आउसन्ते णं' प्रयोग* ही सर्वथा उचित माना जाना चाहिए । * मेरी पुस्तक "प्राचीन अर्धमागधी की खोजमें" के पृ. 98 पर “आउसन्तेण(णं)" पाठ को उचित समझाया गया है वह इस नये प्रमाण के आधार पर अब स्वतः निरस्त हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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