Book Title: Hem Sangoshthi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 101
________________ ७४ महाराष्ट्री प्राकृत हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत व्याकरण में वररुचि के प्राकृत-प्रकाश की तुलना में महाराष्ट्री प्राकृत के विषय में जो विशेषताएँ हैं उनकी चर्चा एक अलग लेखमें की जा चुकी है अतः उनका पुनः वर्णन न करके उनका सार दे देना ही उपयुक्त होगा । हैमव्याकरण की प्राकृत-प्रकाश की अपेक्षा निम्न विशेषताएँ है - ___1. कुछ नयी सामग्री, 2. कुछ क्षतियाँ और न्यूनताएँ दूर करना, 3. अमुक अंश में संशोधन, 4. कभी कभी पूर्ति करना, 5. कभी कभी अव्यवस्था को दूर करना और 6. कालक्रम से भाषा में जो नवीनता आयी उसके विषय में नये नियम । इस दृष्टि से हेमचन्द्राचार्य का अवलोकन सूक्ष्म, गहन तथा विशाल रहा श्रीमती नीति डोल्ची द्वारा हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत व्याकरण के विषय में जो आक्षेप लगाये गये हैं उनकी भी समीक्षा एक अलग लेख में की जा चुकी है। उनके आक्षेप इस प्रकार हैं - हेमचन्द्राचार्य तेजस्वितारहित, परिपक्वतारहित, मौलिकतारहित, परंपरासे प्रतिबद्ध नकलची, अवैज्ञानिक, घालमेल करनेवाले थे और उनका व्याकरण परिपूर्णतारहित एक संग्रह मात्र है । इन सबका जवाब उस लेखमें दे दिया गया है । इन आक्षेपों के बावजूद श्रीमती नीति डोल्ची को हेमचन्द्राचार्य की प्रशंसा भी करनी पड़ी । उनका ऐसा अभिप्राय है कि हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण का संस्करण अन्ततोगत्वा वररुचि से बेहत्तर है (पृ. 164)। वररुचि का प्राकृत व्याकरण अध्ययन-कक्ष की एक पुस्तिका मात्र है और एक प्रारंभिक प्रयत्न सा (पृ. 35) है । वह न ही महाराष्ट्री प्राकृत का पूरा व्याकरण है (पृ. 45) । हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत-व्याकरण के स्रोत मात्र सामान्य प्राकृत ही नहीं परंतु जैन आगम और जैन महाराष्ट्री साहित्य भी है (पृ. 179, 180)। 1. देखिए : हैमवाङ्मय - विमर्श, लेखांक क्रम नं. 19, गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर, 1990 2. देखिए वही, लेखांक क्रम नं. 20 3. Prakrit Grammarians, L. Nitti Dolci, Motilal Banarasidas, 1972 (page numbers quoted). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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