Book Title: Hem Sangoshthi Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 99
________________ (iii) प्राकृत-प्रकाश के अनुसार पैशाची (10.3) में मध्यवर्ती घोष व्यंजन अघोष बन जाते हैं जबकि हेमचन्द्र के (8.4.325) अनुसार यह लक्षण चूलिका पैशाची का है। पैशाची में त = त और द = त (8.4.307) होता है। अतः प्राकृत-प्रकाश में दोनों भाषाओं का मिश्रण हो ऐसा प्रतीत होता हैं । पैशाची भाषा की निम्न विशेषताओं के बारे में दोनों एकमत नहीं हैं । (हेमचन्द्र के अनुसार) __ (वररुचि के अनुसार) 1 इव = पिव 8.2.182 1 पैशाची में 10.4 (सामान्य प्राकृत में) 2. ज्ञ = ञ (सव्वञो) 2. ज्ञ = अ (सव्वञ्जो) 8.4.303 10.9 3 न्य = ञ (कब्रका) 3. ज्ञ = ञ्ज, 8.4.305 (कञ्जका) 10.10 4. हृदयम् = हितपकं 8.4.310 4. हितअकं 10.14 हेमचन्द्राचार्य द्वारा दिये गये निम्न रूप वररुचि के प्राकृत-प्रकाश में नहीं मिलते हैं । (i) शौरसेनी के रूप 1. इदानीम् = दाणिं 8.4.277 | 2. इह = इध 8.4.268 3. एव = य्येव 8.4.280 | 4. तावत् = दाव 8.4.262 (वैकल्पिक) 5. ननु = णं 8.4.283 6. न्त = न्द 8.4.261 (कुछ शब्दोमें) अन्देउर 7. पूर्व = पुरव 8.4.270 8 . र्य = य्य (वैकल्पिक) 8.4.266 9. हीमाणहे, अम्महे, हीही (निर्वेद, | 10. -इन् अन्तवाले नाम शब्दों में विस्मय और हर्ष के लिए संबोधन के लिए वैकल्पिक - आ, प्रयुक्त) काञ्चुइआ, 8.4.282, 284, 285 8.4.263 11. तस्मात् = ता 8.4.278 12 सं. भू. कृ. का प्रत्यय - दूण 8.4.271 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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