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मागधी में नकार के प्रयोग - सूत्र नं. 8.4.302 के अनुसार शौरसेनी के विषय में उपर दिये गये सभी उदाहरण मागधी के लिए भी लागू हो जाते हैं। इनके सिवाय कुछ और उदाहरण इस प्रकार हैं (सूत्र नं. 287-302) नले (नरः), नलिन्दाणं (नरेन्द्राणाम्), निस्फलं, - नमिल - (-नम्र-), न, नु, धनुस्खंडं, विस्तूं (ण = न), आवन्न (आपन्न) ।
वररुचि के प्राकृत-प्रकाश में शौरसेनी एवं मागधी के लिए नकार वाले कोई उदाहरण नहीं मिलते हैं।
आचारांगकी अर्धमागधी भाषामें नकार के प्रयोग की स्थिति इस प्रकार है। प्रारंभिक नकार (i) शुब्रिग महोदय के संस्करण में प्रायः नकार (ii) आगमोदय संस्करण में 50 प्रतिशत णकार (iii) जैन विश्वभारती के संस्करण में प्रायः णकार (iv) महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में 75 प्रतिशत णकार
मजैवि. से प्रकाशित अन्य आगम ग्रंथों में जो मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित हैं उनमें प्रारंभिक नकार की बहुलता है जबकि मुनिश्री जंबूविजयजी द्वारा संपादित ग्रंथों में प्रारंभिक णकार की बहुलता है ।
प्रोफेसर आल्सडर्फ ' द्वारा संपादित आगम साहित्य के दो अध्ययनों में मध्यवर्ती नकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं - सूत्रकृतांग - सुहुमेनँ, अंजनसलागं, मोनं, सुमिनं, सिनाणं, भोजनं, जवोदनं । दशवैकालिक सूत्र - न खने, सुनिसियं ।
इसिभासियाई में मध्यवर्ती नकार के अनेक प्रयोग मिलते हैं ।
आगमग्रंथों के विविध संस्करणों में दन्त्य नकार के प्रयोग की स्थिति एक समान नहीं है । किसी में नकार तो किसी में णकार मिलता है । हस्तप्रतों में भी यही स्थिति है।
1. देखिए Kleine Schriften, L. Alsdorf, Wiesbaden, 1974 में संपादित
अध्ययन और मेरा ग्रंथ 'परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी'
का पृष्ठ नं. 53 2. देखिए शुब्रिग महोदय का ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अहमदाबाद का संस्करण
और ऊपर पादटिप्पण नं. 1 में उल्लिखित मेरे ग्रंथ का पृष्ठ नं. 53
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