Book Title: Hem Sangoshthi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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हेमचन्द्राचार्यका प्राकृत व्याकरण, वररुचि और अर्धमागधी
श्री हेमचन्द्राचार्यका 'प्राकृत व्याकरण' अपने से दो पूर्ववर्ती व्याकरणकारों से विशाल है । श्री वरुचि के 'प्राकृत प्रकाश' में कुल 490 सूत्र हैं 427 + 63; परिच्छेद 9+3) जबकि हेमचन्द्राचार्य के व्याकरणमें 742 सूत्र (1119 में से धात्वादेश के 259, अपभ्रंश के 118 377 घटाने पर) हैं अर्थात् प्राकृत प्रकाश से डेढ़ा है और ये अन्य प्रकरण उसकी अपनी विशेषताएँ हैं । चण्ड के 'प्राकृत लक्षणम्' में तो मात्र 99 सूत्र ही हैं जिसमें अनेक मुद्दों का वर्णन ही नहीं हैं ।
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के. आर. चन्द्र
सामान्य प्राकृत,
हैमव्याकरण में प्राकृत भाषाओं का क्रम इस प्रकार है शौरसेनी, मागधी, पैशाची और चूलिका पैशाची । मागधी और पैशाची के लिए कहा गया है 'शैषं शौरसेनीवत्' ( 8.4. 302, 324) और चूलिका पैशाची के लिए कहा गया है 'शेषं प्राग्वत्' । ( 8.4. 328) अर्थात् पैशाची के समान । प्राकृतप्रकाश में क्रम इस प्रकार है- पैशाची, मागधी और शौरसेनी । प्रारंभिक दोनों भाषाओं के लिए कहा गया है 'प्रकृतिः शौरसेनी' ( 10.2, 11.2 ) । इस अवस्था में शौरसेनी के लक्षण पहले आने चाहिए थे और तत्पश्चात् पैशाची और मागधी के । व्यवस्था का यह एक दोष माना जाय या नहीं ।
I
योनि, प्रकृति या उत्पत्ति का प्रश्न
हैमव्याकरण में सामान्य प्राकृत (महाराष्ट्री ) की प्रकृति संस्कृत बतायी गयी है - 'प्रकृति: संस्कृतम्' ( 8.1.1); शौरसेनी के लिए कहा गया हैं 'शेषं प्राकृतवत्' (8.4. 286); मागधी और पैशाची के लिए कहा गया ‘शेषं शौरसेनीवत्' । जबकि प्राकृत प्रकाश में प्राकृत की कोई 'प्रकृति' नहीं बतलायी गयी है, सिर्फ नौवें परिच्छेद के अन्त में कहा गया है- 'शेषं संस्कृतात् ' ( 9.18 ); वृत्ति: शेषं संस्कृतात् अवगन्तव्यः । शौरसेनी के लिए कहा गया है 'प्रकृतिः संस्कृतम्' ( 12.2) और 'शेषं महाराष्ट्रीवत् ' ( 12.32 ) ।
इन दो वैय्याकरणों के अलग अलग कथनानुसार संस्कृत ( प्राकृत) महाराष्ट्री
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