Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 19
________________ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः तारक गुरुदेवाय नमः । सम्पादकीय दो शब्द प्राकृतिक वातावरण के अत्यन्त प्रेमी, प्रसिद्धि से दूर भागने वाले, छोटे-छोटे गांवों में विचरने वाले पूज्य गुरुदेव का चातुर्मास संवत् २०४१ में समीग्राम में हुआ। चातुर्मास अर्थात् धर्मऋतु । चातुर्मास में वर्षा की झड़ी के समान गुरुवाणी की भी झड़ी बरसती है। चातुर्मास दरम्यान पूज्य गुरुदेव ने धर्मरत्न प्रकरण पर व्याख्यान दिया था । इस ग्रन्थ में श्रावक के २१ गुणों का वर्णन है । अलंकार और अतिशयोक्ति रहित होने पर भी तात्त्विक और मार्मिक, सीधी और सरल भाषा में वर्षा करती हुई गुरुजी की वाणी - धारा श्रोताओं के हृदय को तरबतर कर देती थी। मुझे व्याख्यान के नोट लिखने की अत्यन्त तीव्र अभिलाषा थी । इसीलिए मैंने व्याख्यान के सारांश नोट कर लिए, क्योंकि सुना हुआ सम्पूर्ण याद नहीं रहता, किन्तु लिखा हुआ सालों तक स्थायी रहता है। एक समय जब मैं व्याख्यान के नोट्स पढ़ रही थी उसी समय एक भाई वंदन के लिए आए। उन्होने नोट बुक पढ़ने के लिए माँगी। लेखन में सादगी होते हुए भी वर्तमान में धर्मीजनों का मुखौटा पहनकर फिरने वाले लोगों के लिए ये सचोट बातें उनके दिल को स्पर्श कर गई। उन्होंने मुझे कहा - यह समस्त लेखन नोट बुक में ही रहे इसकी अपेक्षा इसको जनता के हृदय तक पहुँचाइये। गुरुदेव ग्रामों मे ही विचरण कर रहे हैं अतः उनके मुक्त विचारों से जनता वंचित रह जाती है। इसमें संचित गुरुवाणी के द्वारा अनेक धर्मीजनों को सत्य धर्म जानने को मिलेगा तथा श्रावक का मुखोटा धारण करने वाले आज के श्रावक भी सच्चे श्रावक बनेंगे। उन्होंने इन लेखों को व्यवस्थित करने के लिए मुझे कहा। मैं उनको 'हाँ' या 'ना' कहूँ उससे पूर्व तो वे भाई कुछ ही दिनों में प्रूफ लेकर मेरे सामने

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