Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 55
________________ रुडी ने रढियाळी रे (सुन्दर और मनमोहक ) श्रावण वदि ६ करुणा का एक आयाम .. हमारे ऊपर भगवान् ने कितनी अपार करुणा की है हमको भूख और प्यास तथा अनेक प्रकार की वेदनाओं से पीडित तिर्यंच पंचेन्द्रिय के बीच में रखा है जबकि देवलोक में अकेले देव रहते हैं। वहाँ कोई मनुष्य नहीं होता और न किसी प्रकार की यातना से पीडित दूसरे जीव होते हैं। देवों की आँखो के सामने केवल सुख ही सुख दिखाई देता है और हमारी आँखों के सामने यातनाओं से पीड़ित जीव दिखाई देते हैं । दूसरी योनि के दुःखों को दिखलाने में भी भगवान् की करुणा है । हमको आँखो के सामने दिखाई देता है कि संसार कैसा है? यदि हम पाप करेंगे तो आँखे बंद होने पर हमारे समक्ष ये तिर्यंच आदि योनियां पड़ी ही हैं । प्रात: उठने के साथ ही हम केवल खाना-पीना, मौज- शौक का ही विचार करते हैं । हमको संसार में भय लगता है, इसलिए हम धर्म करते हैं या संसार को मधुर बनाने के लिए हम धर्म क्रिया करते हैं? यह संसार एक कड़वी नीम की वेलड़ी है, यह कभी मीठी नहीं बन सकती। जो यह संसार मधुर बन सकता तो धन्ना, शालिभद्र और थावच्चापुत्र आदि घर-द्वार नहीं छोड़ते । थावच्चापुत्र . थावच्चाबाई का राज दरबार में बहुत अच्छा मान था । वह द्वारिका नगरी में रहती थी। विधवा थी । करोड़ों रुपयों का व्यापार करती थी I द्वारिका नगरी में उसका नाम था । उसका एक पुत्र था जो थावच्चापुत्र के नाम से पहचाना जाता था । थावच्चापुत्र का युवावस्था में विवाह भी हो गया था, देवांगनाओं जैसी उसकी स्त्रियाँ थीं। दोगुन्दक देवों के समान वह

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