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गुरुवाणी-१
सम्पूर्ण शरीर - धर्म योग्य है इन्द्रियों के द्वारा चढ़ते हुए जहर को दूर करने की एक मात्र शास्त्र ही वनस्पति रूप है। प्रतिदिन श्रवण से मोह का विष धीरे-धीरे कुछ कम होता जाता है। शास्त्रवाणी नहीं सुनते हैं तो जीवन में अधिक से अधिक जहर फैलता जाता है। श्रावक की दूसरी व्याख्या ....
जिसमें श्रद्धा, विनय और क्रिया ये तीनों वस्तुएं एकत्रित होती हैं तब वह श्रावक बनता है। अनाथीमुनि की बात सुनकर श्रेणिक महाराज को ऐसा प्रतीत हुआ कि वास्तव में मैं अनाथ हूँ। बस, सबका एक नाथ है महावीर।
Savabheemaas