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प्रकृति से सौम्य
श्रावण सुदि १०
नहीं देखने पर कल्याणकारी....
धर्म के योग्य श्रावक का तीसरा गुण है प्रकृति से सौम्य । धर्म करने वाला व्यक्ति प्रकृति से सौम्य होना ही चाहिए, वह शान्त हो, निष्कपटी हो। जो व्यक्ति धर्मी कहलाता है वह चाहे जितना भी धर्म करे परन्तु उसके स्वभाव में तनिक भी सरलता न हो, तनिक भी सौम्यता न हो तो उसे धर्मी कैसे कहें? क्रोध में मनुष्य सीमा से बाहर कटुवचन बोलता है। ऐसे मनुष्यों को शास्त्र में कांटेदार वृक्ष की उपमा दी गई है। बबूल देखने में हरियाला होता है किन्तु पास जाने पर वह अपने कांटे चुभाये बिना नहीं रहता। दूसरी एक सूक्ति प्राप्त होती है- अदीठे कल्याणकराः। अर्थात् इसको नहीं देखने मे ही कल्याण है। ऐसे मनुष्य चाहे जितना धर्म करें किन्तु वह अशान्ति का ही कारण बनता है। क्रियाकांड यह तो धर्म का बाह्य स्वरूप है। ज्ञान और क्रिया से मोक्ष मिलता है यह सच्ची बात है, किन्तु ज्ञान क्या है और क्रिया क्या है? क्रोध को बुरा समझना यह ज्ञान है और उसका त्याग करना क्रिया है। नौ प्रकार के कायोत्सर्ग....
शास्त्रों में ९ प्रकार के कायोत्सर्ग कहें है१. खड़े-खड़े:- खड़ा होकर कायोत्सर्ग करता हो और उसकी विचारधारा
भी ऊँची हो। २. खड़े-बैठे :- कायोत्सर्ग तो खड़ा-खड़ा करता हो, किन्तु उसकी
विचारधारा निम्न कोटि की हो। ३. खड़े-सोये :- कायोत्सर्ग खड़ा-खड़ा करता हो, किन्तु प्रमाद में
व्यस्त हो। आर्त ध्यान में डूबा हुआ हो।