Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

Previous | Next

Page 135
________________ गुरुवाणी-१ परम की यात्रा सहायता नहीं करता है वह लोगों में तिरस्कृत होता है। उसे किसी प्रकार का व्यसन नहीं होना चाहिए। उसे शराब का अथवा निम्नकोटि का व्यापार नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य एक तरफ धर्म करता हो और दूसरी तरफ मटके का धंधा करता हो और उसके मुनाफे में से धर्म कार्य में पाँच-पच्चीस हजार खर्च कर देता हो तो वह और उसका धर्म दोनों ही तिरस्कार के पात्र बनते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142