Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 68
________________ जोड़ और तोड़ ४६ योनियों में तो इनके दर्शन भी दुर्लभ हो जाते हैं । गुरुवाणी - १ हृदय से प्रणाम .... कृष्ण महाराज सभा में बैठे हैं। वे अपने दोनों राजकुमारों को कहते हैं- भगवान् नेमिनाथ को जो पहले नमस्कार करेगा उसको मैं उपहार स्वरूप घोड़ा दूँगा। दोनों राजकुमारों के नाम थे- शाम्ब और पालक । दोनों को घोड़ों की आवश्यकता थी। पालक विचार करता है- मैं भगवान् को पहले नमस्कार करके घोड़ा प्राप्त कर लूँ, इसलिए वह तत्काल ही उठकर दौड़कर भगवान् के पास जाता है और केवल भगवान् को बैठा हुआ देखकर मस्तक झुकाकर वापस लौट आता है। जबकि शाम्ब ने तो स्वयं के नियमानुसार उठकर आसन पर बैठकर भगवान् को हृदय से नमस्कार किया । पालक वापस आकर कृष्ण महाराज को कहता है- पिताजी! मैं पहले वन्दन करके आया हूँ, अत: घोड़ा मुझे दीजिए। कृष्ण कहते हैं- पहले मैं भगवान् से पूछ लूं कि पहले नमस्कार किसने किया है? कृष्ण महाराज भगवान् से पूछते हैं। भगवान् कहते है- पहले शाम्ब ने वन्दन किया है। पालक कहता है- शाम्ब तो अभी तक आपके पास आया ही नहीं तो उसने नमस्कार कैसे किया? भगवान् उत्तर देते हैं- उसने घर बैठे ही हृदय से मुझे नमस्कार किया है। इसलिए पहला नमस्कार उसी का है । अतः परमात्मा के साथ हृदय से सम्बन्ध जोड़ो, प्रभु के साथ सम्बन्ध जुड़ जाने से धन्ना, शालिभद्र, रोहिणेय जैसे अनेक महात्मागण तिर गये हैं । भगवान् में एक ऐसी विशेषता होती है, द्रष्टा होते हैं, चिंतक नहीं होते; क्योंकि चिंतन में सारी वस्तुओं का समावेश हो जाता है और कभी-कभी झूठी वस्तु का भी चिन्तन होता है। जबकि आँखो देखी सत्य ही होती है। भगवान् ऐसे ही द्रष्टा थे। शुश्रूषा.. भोजन करते हुए भूख का महत्त्व है। जिस मनुष्य को तेज भूख लगी होगी उसको सुखी रोटी भी शक्कर के समान मीठी लगेगी। भूख

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