Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 99
________________ ७७ गुरुवाणी-१ मूल तत्त्व असत्य बोलने पर जो सत्य की सिद्धि होती है वह चली जाती है। ये सारे व्रत भगवान् के ही एक स्वरूप हैं। सच्चे सत्यवादी के प्रताप से अग्नि भी स्तंभित हो जाती है। व्रतों की शक्ति .... पाँच महाव्रतों में रही हुई शक्ति सामान्य नहीं होती है । उस शक्ति का सामर्थ्य ऐसा प्रबल होता है कि वह समस्त पृथ्वी को कंपित कर सकती है और उन व्रतों में तनिक सी भूल भी भवभ्रमण को बढ़ा देती है। वसु राजा.... क्षीरकदम्बक आचार्य के पास नारद, राजकुमार वसु और आचार्य पुत्र पर्वत ये तीनों ही विद्यार्थी शिक्षण प्राप्त कर रहे थे। एक दिन अध्ययन के उपरांत रात्रि के समय थककर वे सब छत पर सो रहे थे। उसी समय आचार्य के कानों में चारण महर्षि के निम्न शब्द सुनने में आते हैं- इन तीनों विद्यार्थियों में से एक स्वर्गगामी है और दो नरकगामी हैं । सुनते ही आचार्य विचार करते हैं कि इन तीन में से दो नरक में कौन जाएंगे और एक स्वर्ग में कौन जाएगा? इसकी प्रतीति करने के लिए प्रातःकाल आचार्य क्षीरकदम्बक भीतर लाख से भरा हुआ और आटे से बना हुआ एक-एक मुर्गा तीनों को दिया और कहा- जहाँ कोई भी न देखता हो वहाँ इसका वध करना। तीनों व्यक्ति अपना-अपना मुर्गा लेकर निर्जन स्थान में जाने के लिए निकलते हैं । वसु और पर्वत किसी निर्जन प्रदेश में जाकर उन मुर्गो का वध कर देते हैं। नारद भी जनरहित जंगल में जाते है। वहाँ वे विचार करते हैं- यह मुर्गा स्वयं देखता है, मैं देखता हूँ, भगवान् देखते हैं, विद्याधर देखते हैं, ऐसी स्थिति में मैं इसका वध कैसे कर सकता हूँ। दूसरी बात, पूज्य आचार्यगण इस प्रकार का हिंसक आदेश दे ही नहीं सकते। आचार्य के वाक्यों में कोई न कोई गंभीर रहस्य अवश्य है, अतः वध किए बिना ही वापस लौट आता है। तीनों व्यक्ति आचार्य के पास

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