Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 47
________________ धर्म - भावशुद्धि २५ गुरुवाणी - १ क्रमशः देखते-देखते वह एक चित्रकार के पास पहुँचता है। राजा वहाँ देखता है कि दीवार खाली है । राजा पूछता है - भाई ! इतने दिनों में तूने क्या किया? केवल वेतन ही लेते रहे क्या? चित्रकार कहता है- हे राजन् ! मैंने तो इतने दिनों तक इस दीवार को घिस - घिस कर चमका दिया है, क्योंकि पॉलिश की हुई दीवार पर बनाया हुआ चित्र दीर्घकाल तक रहता है, अन्यथा वे चित्र पपड़ी बनकर उखड़ जाते है। दीवार को मैंने दर्पण के समान बना दिया है। कार्य करने वालों के बीच में परदा डालकर जो अलगअलग विभाग बनाये थे । उन परदों को हटाते ही सामने वाले चित्र का प्रतिबिम्ब इस दीवार पर पड़ने लगा और वैसा ही चित्र दिखाई देने लगा । महापुरुष भी हमें इसी ही बात की शिक्षा देते हैं कि पहले तुम अपनी आत्मा रूपी भींत पर लगे हुए असमानता को घिस - घिस कर के दर्पण के समान बनाओ, उसके बाद उस पर सद्गुण रूपी चित्रों का आलेखन करो। उसके बाद इस चित्र का महत्त्व देखो कि अनन्त काल तक सद्गुणों के संस्कार नष्ट नहीं होंगे / खराब नहीं होंगे। हम छोड़ने लायक दोषों को पकड़कर रखते हैं- राग, द्वेष, मान, माया, क्रोध ये दुर्गुण जब तक हमारे घर में बैठे हुए हैं तब तक सद्गुण हमारे पास भी नहीं आयेंगे । समस्त धर्मों में दान धर्म सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, अतः देना सीखो। समुद्र सब नदियों से जल का संग्रह करता है इसलिए उसका पानी खारा जहर बन गया है और समुद्र का स्थान भी नीचा है, जबकि मेघ काले होने पर भी वे सदा दूसरो को देते हैं इसी कारण इनका स्थान भी ऊँचा है । सब लोग उसका आतुरता पूर्वक पुनः-पुनः स्मरण करते है । इस अपार संसार समुद्र में हमें जो मनुष्य भव मिला है उसको सार्थक करना चाहिए । धर्म जीवन की पवित्रता . धर्म क्या है? हमने धर्म की व्याख्या बहुत ही छोटी सी बना रखी है। सामायिक, पूजा, यात्रा करना, थोड़े बहुत रुपये खर्च करना

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