Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 52
________________ प्रवासी श्रावण वदि ५ सिकन्दर का अन्तिम संदेश. संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ मनुष्य अजर-अमर बन जाता हो । भले ही वह चक्रवर्ती के स्थान पर हो अथवा किसी राजा महाराजा के स्थान पर हो। इस जगत् में सिकन्दर नाम का सम्राट हुआ । उसके समय में भारत का स्थान कैसा था ? विश्व के लोग ऐसा कहते थे कि 'मनुष्य जीवन कैसे जीना चाहिए ! यह यदि जानना है तो भारत में जाना चाहिए। किन्तु इस समय तो कितने ही हिन्दु भी शराब, ,जुआ, माँस के व्यसनी बन गये हैं। पूर्व समय में पश्चिमी लोग हमारा अनुसरण करते थे जबकि आज हम लोग पश्चिम आदि देशों के तुच्छ तत्त्वों का अनुसरण कर रहे हैं। ग्रीष्म ऋतु में यह सिकन्दर सेना लेकर हिन्दुस्तान पर चढ़ाई करने के लिए आया था, उस समय सिन्ध के किनारे पर आपस में समझौता होने के कारण वह वापस लौटने की तैयारी कर रहा था। उस समय सिकन्दर अपने विश्वस्त आदमियों से कहता है कि हमें अब यहाँ से वापस लौटना है, इसलिए किसी सन्त पुरुष को तुम लोग ले आओ। क्योंकि, जिस समय मैं सेना लेकर निकला था उस समय मेरे गुरु ने मुझे कहा था की विजय प्राप्त करके जब लौटो उस समय हिन्दुस्तान के किसी सन्त को साथ ले आना।' सिकन्दर के आदमी सन्त की खोज करते हैं। जंगल में कोई मुनि मिल जाते हैं, दूत उनके पास पहुँचते है और कहते हैं- आपको सम्राट सिकन्दर बुला रहे हैं। मुनि कहते हैं- यह सिकन्दर किस जाति का प्राणी है? मैं उसे पहचानता नहीं हूँ। मुझे तुम्हारे सिकन्दर के पास जाना भी नहीं है । जाओ सिकन्दर को कह दो - 'मिलना है तो यहाँ आकर मिल ले।' मुनि का संदेश दूतों ने सिकन्दर को कहा ।

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