Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

Previous | Next

Page 31
________________ धर्मरहित चक्रवर्ती पद मुझे नहीं चाहिए ९ गुरुवाणी - १ कुमारपाल प्रतिदिन उठने के साथ ही भगवान से प्रार्थना करते थे- हे प्रभु! आपके धर्म के बिना मुझे चक्रवर्ती का पद और समृद्धि मिल जाए तब भी उसकी मुझे आवश्यकता नहीं है । चक्रवर्ती की समृद्धि किस प्रकार की है, जानते हो? ८४ लाख घोड़े, ८४ लाख हाथी, ९६ करोड सैनिक दल और १६ हजार देवता जिसकी सेवा में हाजिर रहते हैं । वह असीम बल का धारक होता है । एक अवसर्पिणी से उत्सर्पिणी के मध्य में बारह चक्रवर्ती होते हैं । चक्रवर्ती की कितनी अपार शक्ति होती है ? देखिए- चक्रवर्ती के एक ओर १६ हजार राजागण हों और दूसरी तरफ १६ हजार राजागण हो, बीच में चक्रवर्ती स्वयं खड़ा हो, उसके हाथ में शृङ्खला / जंजीर हो । उस अवस्था में चक्रवर्ती कहे - 'आप लोग मुझे खेंचिए ।' दोनों और के ३२ हजार राजा अपनी सारी शक्ति लगाकर खेंचते हैं किन्तु चक्रवर्ती को एक मिलीमीटर भी हिला नहीं पाते । चक्रवर्ती की मुख्य रानी में भी इतना ही सामर्थ्य होता है । वह ललाट पर बिंदी लगाते समय अपने हाथ में रहे हुए हीरे को मसल करके उसके टुकड़ों को लगाती है । ऐसे अतुलबल धारक चक्रवर्ती पद को भी कुमारपाल महाराजा धर्म के लिए में त्याग देते हैं, इस त्याग के लिए वह तैयार है। बड़े-बड़े राजा और राजाधिराज हो गए किन्तु आज उनका कोई अस्तित्व नहीं है, तो क्या हमारी सम्पत्ति सदा के लिए स्थिर रहने वाली है? धर्म का उपदेश अवश्य ही सुनते हैं किन्तु जब तक उसका महत्व हमें समझ में नहीं आएगा तब तक वह उपदेश भी व्यर्थ है। जब भगवान् के उपदेश को हम ग्रहण कर सकेगें उस अवस्था में यह सम्पत्ति भी हमें नगण्य सी लगेगी। जब तक हमारे जीवन पर पुण्य रूपी बादलों की छाया है तब तक किसी प्रकार की बाधा/अड़चन नहीं है । किन्तु, जब यह पुण्य रूपी बादल हट जाएगें उस समय गर्मी की उष्मा को हम सहन नहीं कर पाएगें । अतः गर्मी

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142