Book Title: Gunvarma Charitra
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Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org म प्राह भव सोत्साहः, कुरूपत्वेऽपि यत्तव॥राज्यं संपत्स्यते प्राज्य, रम्यारामा च निश्चितम् / गुण कलामेकां प्रदास्यामि, रंजितो भूपतिर्यया // अर्द्धराज्यं च कन्यां च, स्वयमेव प्रदास्यति // चरित्र / 133|| ततस्त्वया तया साकं, कार्य केलिकुतूहलम् ॥अधुना मृत्युना किं ते, गृह्यतांजन्मनः फलम् || F| आराध्यतां त्वया देवी, भवानी सिंहवाहना॥ सा तुष्टा सर्वकार्याणि, करिष्यति तवान्वहम।। | तदाराधनविद्या मे, दत्ता तेन मनीषिणा // साधयित्वा च तां सोऽहं, संप्राप्तोऽस्मि तवांतिकम् / नृपःप्रोचे ततः शीघं, कुरुष्व निजसज्जताम् // अथासावुत्थितोऽचालीसिंहानयनहेतवे॥ | लोकैः परिगतो गत्वा, वनांतर्मत्रपूर्वकम् / / पूर्वस्यां दिशि चिक्षेप, साक्षेपं सर्षपानमौ // कृतफाले मृगेंद्रेऽथ, समेते सति विभ्यतम् // लोकं निर्वार्य हस्तेन, तं दधे केसरेष्वसौ // तं मत्तं वृषवद्धृत्वा, भापयंतमपि प्रजाः // आनीय भूपतेर्दारे, स्थापयामास चंचलम् // | आनीयतामथो देवी, सिंहमारोप्यतामिति / / कथिते तेन सा प्रीता, प्राप्ता तत्र यशोमती॥ चंचलत्वं विशेषेण, तदा सिंहे प्रकुर्वति // भूपः प्रोवाच भो राज्ञी, त्वमेवारोपय स्वयम् // 133 // / श्रुत्वेत्यचिंतयचित्ते, जनः पश्यन् परस्परम् // वामनोऽ कथंकारं, राज्ञीमारोपयिष्यति।। For Private and Personal Use Only

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