Book Title: Gunvarma Charitra
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवमुकत्वा स्वरूपं स व्यंतरेंद्रस्तिरोदधे // प्रातः प्रबुद्धः स्वंतातमयं नंतुं समागतः // 533 // गुण०।। तदा धनेश्वरः श्रेष्ठी, स्थालमापूर्य मौक्तिकैः / / नृपाय प्राभृतीचक्रे, प्रोचे च रचितांजलिः।चरित्र / 1534 हे देव देवता कापि, स्वप्नेमामित्युपादिशन् // रत्नसिंहाय दातव्या, स्वपुत्री नृपसूनवे // 1 // है। तेनैषा दीयते तस्मै, वरेष्वन्येषु भूरिषु // ओमित्युक्ते नरेंद्रेण. स तया परिणायितः // | ताभ्यां शुभाभ्यां भार्याभ्यां, महितोऽयमनंगवत् // रतिप्रीतिममाभ्यां म. रेमे बैरं वनादिषु।। || इतश्च तत्र संप्राप्ता, रत्नशेखरसूरयः // भूपो जगाम तं नंतुं, परिवारसमन्वितः // 53 // * प्रियाद्रययुतो रत्नसिंहोऽपि प्रीतमानमः // गत्वा नत्वा च सूरींद्रानश्रीपीद्धर्मदेशनाम // || भो भो अनादिमिथ्यात्वपरिहारेण भावतः // जैनधर्मो विधातव्यः, शिवधर्मनिबंधनम् // शैवं मीमांमकं सांख्य, बौधं नैयायिकं तथा // एतानि दर्शनान्याहुर्धर्म मर्मविवर्जितम् / / | स्याद्वादरूपं मर्म स्यादथवा प्राणिनां दया // तेन मुक्तोऽखिलो धर्मो, जीवेनांगमिवाफलः। वने वामं प्रकुर्वाणाः शेवास्तावत्तपस्विनः / दर्भानुन्मूलयंत्येव, त्वचं गृह्णति शाखिनाम ||153 // शोभाकिनींगुदीतैले, मंचिन्वंत्यन्वहं च ये // दहंति समिधस्तेषा, धर्ममर्मज्ञता कुतः // For Private and Personal Use Only

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