Book Title: Gunvarma Charitra
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KIS-4000-XIOM अनभ्रवृष्टिवत्प्राप्तं, तातं दृष्ट्वा प्रमोदतः // तेऽमुं ववंदिरे प्रीत्या, शुश्रुवुर्धर्मदेशनाम् // गुण | धर्मार्थकाममोक्षेषु धर्मो मूलं निगद्यते // अर्थादयो मूलरूपाद्धर्मादेव भवंति हि // 591 // चरित्र. / 158 तारणाय भवांभोधो, धर्मस्तावत्तरीसमः // चारित्रमेव चारित्रतुलां तत्र विभर्त्यलम्।।५९२|| राज्यमाज्यमिव त्याज्यं, सज्वरेणेव धीमता // यतःस्वल्पसुखं जंतोरत्यंत दुःखसंचयः // ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नत्रयविभूषितम् // जीवं सौंदर्यतः स्वैरं, वृणुते सिद्धिकामिनी // 594 // | / / इति श्रुत्वा समं प्राप्तवैराग्यास्ते नरेश्वराः // न्यस्य राज्ये निजान्पुत्रान्, चाददुः संयमं मुदा / क्रोधो निर्मूलितः पश्चान्मानस्तैरपमानितः // मायाच्छाया परित्यक्ता, लोभक्षोभश्च वारित || ते गुरुणां भुखांभोजादागमं मकरंदवत् // पिवतो ,गवद्भजुः, परं मालिन्यवर्जिताः // पंचबाणस्य वाणानां, पंचानामपि वारणी // पंचधा समितिस्तेषां, चित्तेषु स्थितिमातनोत्।।। - गुणवर्मगुरुयोग्यं, गुणान्वितं निजे पदे // शिष्यं संस्थापयामास, शासनस्य प्रवर्तकम् // ते सर्व आयुरापूर्य, गृहीतानशनास्ततः॥शुभध्यानपरा मृत्वा, ब्रह्मलोकं दिवं ययुः // 150 / चिरं सुखान्यमी भुक्त्वो, देवलोकात्ततश्युताः॥ समुत्पद्य विदेहेषु, सिद्धिमाप्स्यंति सिद्धिदाः For Private and Personal Use Only

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