Book Title: Gunvarma Charitra
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Page 161
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परीक्ष्येहं ततो गत्वा स्वरूपं स्वयमेव तत् // पश्चात्पद्मनरेंद्राय, कथयामि यथोचितम् // गुण०।। इति ध्यात्वा वनं गत्वा, मुनिं नत्वा निविष्टवान् / / प्रपच्छ कुशलं मंत्री, भक्त्या विरचितांजलि चरित्र. / 146|||| अस्माकं केवलाद्भाग्यायमत्र समागताः॥ केनापि हेतुना वेति, विज्ञप्तो मुनिरब्रवीत् // सर्वत्र कुशलप्रश्नः, प्रायशः क्रियते जनैः॥परं मंत्रिन् मनुष्याणां, कुशलत्वं विलोक्यते॥ ॐ पद्माकिं न समायातस्तन्माता किं समेति न॥तां वार्ता कथय क्षिप्रं, ब्रवीम्यागमकारणम् // 1) श्रुत्वेत्यचिंतयन्मंत्री, यन्मया चिंतितं पुरा // तदेव घटते सत्यं, हा त्वया किं कृतं विधे / / M विहिते कुशलप्रश्ने, कुशलत्वं विलोक्यते // इत्येषा कापि वक्रोक्तिविशेष वक्ति कंचन // | इति ध्यायन्नसौ शीघं, गत्वा गौर्यै न्यवेदयत् / / तत्क्षणंसापिसाशंकाकार्य पुत्रमभाषत // . हे वत्स जनकस्तेद्य, संप्राप्तो वर्तते वने // सोऽवादीत्तर्हि तं नंतुं, गच्छामि सपरिच्छदः॥ Rसा प्रोचे सत्स नो वेत्सि, स्वरूपं रूपमन्मथ / / स्थातव्यं तावदत्रैव, यावन्नाकारयाम्यहम्।। / इत्युक्त्वा तत्र संस्थाप्य, पद्म पद्मोपमानना // तेनैव मंत्रिणा साकं, सा गता मुनिसंनिधौ // 14 // वाताहतमिवादर्श, किंचिदिच्छायतां गता // वदनं तस्प पश्यंती, दंडवत्तणनाम सा // For Private and Personal Use Only

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