Book Title: Gunvarma Charitra
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्मितो रत्नसिंहस्तं, विलोक्य रविभास्वरम् // वक्त्रपमं दधौ युक्तं, रात्रावपि विकस्वरम्।।। गुण० कोऽयं कथं कुतः प्राप्त, इति चिंतां वितन्वति // तस्मिन्नसौ जगादेति, श्रूयतां सुकृतालय चरित्र ।१४४|नाट्यस्य चिंता ते चित्ते, वरिवर्ति निरंतरम् / तत्स्वरूपमहं वक्तुं, प्राप्तोऽस्मि व्यंतरामरः॥ मूलनःशृणु संबंधमस्ति रत्नपुरं पुरम् // शंकरो भूपतिस्तत्राभवल्लोकप्रियंकरः // 428 // गौरी नाम्ना प्रिया चासीत्, गौरीवास्य मनोहरा // शेवधर्मंतयोश्चित्तं, वसतिस्म क्रमागते। / अन्यदा सुषुवे पुत्रपुत्रीयुग्मं नृपप्रिया // पद्मनामाभवत्पुत्रः पुत्री च कमलाभिधा // 430 // / तयोर्मासे व्यतिक्रांते, तत्रायातास्तपस्विनः॥ नंतुं जगाम भूपालः पालयन् स्वकुलक्रमम् / / | तेषां धर्मोपदेशंतु, श्रुत्वा वैराग्यकारणम् // मासजातं सुतं न्यस्य, राज्ये दीक्षामुपाददे // | बिभ्राणः स जटाभारं, भस्मोद्धूलितगात्रभाक् / / भूपो जगाम तैः साकमाश्रमं श्रमवर्जितः॥ पितुहं प्रति प्राज्यपरिवारसमन्विता // मिलनाय तदा राज्ञी, युगलेन सहाचलत् // 43 // * राज्यभारतौ संभा, निर्दभा मंत्रिणस्तदा // अनुगत्य कियद्राज्ञी, तद्विसृष्टाःपुरं ययुः // 5 // 144 / तस्यामटव्यां प्राप्तायां, भिल्लघाटी समापतत् // लोकेषु लुंटयमानेशु, प्रणष्टाःसुभटा अपि // For Private and Personal Use Only

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