Book Title: Gunvarma Charitra
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तनुजो धनदत्तस्य, धीरस्तत्कुक्षिमागतः॥ समये स तया जातः, पिता चक्रे महोत्सवम् // गुण रत्नसिंहाभिधः सोऽयं, वर्द्धमानो दिने दिने / कलाकलापकौशल्यशाली तारुण्यमासदता। चरित्र. 142 | धरणीधरभूपस्य, धारिणीकुक्षिसंभवा // रमेति कन्या तेनोढा, रेमे च स तया सह // 1 | अन्यदा रत्नसिंहस्य, रत्नपल्यंकशायिनः // निशीथसमये निद्रा, नेत्रतो दूरतां गतो // | सोऽथ जागरितोऽश्रौषीन्नाटयध्वनिममंदधीः॥ मृदंगादिकवादित्रगीतगानमनोहरम् / / 405 // 4 रणन्नूपुरझंकारघर्घरीघोषबंधुरम् // उल्लसन्मेखलादामकिंकिणीकंकणक्वणम् // 406 // // | श्रुत्वेति दध्यिवानेष, स धन्यो यस्य कस्यचित् // पुरतो जायते नाट्यमिदमाश्चर्यकारणमा IS उत्थाय तल्पतः सैष, गवाक्षादिषु वीक्षणम् // चकार चतुरस्तेनाक्षिप्तचेताः पुनः पुनः // परं ददर्श न क्वापि, केवलं तद्ध्वनिःश्रुतः // असौ विचिंतयामास, किमिदं कौतुकं महत्।। / अश्वप्लुतं यथा जायमानं श्रूयेत निश्चयः॥ परं न शक्यते कर्तु कुतश्चिद्भवतीत्यदः // पाताले भूतले वापि, गिरौ वा गगनेऽपि वा। अन्यत्र वा भवेत्कापि, नृत्यमेतन्मनोहरम। 142 // | कर्णयोर्जायतेहों, नाट्यस्य वनितःश्रुतेः। तस्यावीक्षणतः किंतु, खिद्यते नेत्रयोयुगम् // For Private and Personal Use Only

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