Book Title: Gunvarma Charitra
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण | ततो निपतितो व्योग्नः, सोऽभूत्तादृश एव हि // पतित्वा पादयोस्तं च क्षमयामास खेचरः // / अज्ञानस्यापराधं मे, क्षमस्वै क्षमाधर // इत्युक्तः शांतहत् किंचित्तपस्वी प्रति तं जगौ // चरित्र / 136 / 4 / भूपप्रियापरिरंभे, वामनत्वं गमिष्यति // प्रयास्यति कुरूपत्वं, राजकन्याकरग्रहे // 333 // | श्रुत्वेति खेचरो दध्याविदं मे घटते नहि / / कुरूपता ततः सेयं, यावज्जीवं समागता // राज्ञः प्रियायाः कन्याया, दर्शनं मम दुर्लभम् / / संभवेताम् कुतमाहि, परीरंभकरग्रहौ // | परीरंभं परस्त्रीणां, वारयंतिस्वयं बुधाः // अयं तु कारयत्येतं, तत्त्वं तन्नावबुध्यते // एवं मह्यं कुरूपाय, दत्तेऽन्योऽपि न कन्यकाम् // कुतस्तद्राजकन्यायाः, पाणिग्रहणसंभवः॥ वीरेण कपिलादानं, कालान्महिषरक्षणम् // श्रेणिकाय यथा प्रोक्तं, तथानेन ममाप्यदः // | विधिद्वारा निषेधोऽयमनेन कथितो मम // भेरी , तरुच्छायायोगो रोगापहो यथा // इत्यादि ध्यायतस्तस्य, वने तत्रैव तस्थुषः / / गृहं साधितविद्योऽगात्तोन्मत्रं मणिकुंडलः // .. # अशा सुहृदं कापि, सर्वत्रासौ परिभ्रमन् // वने तत्रैव संप्राप, यत्र तिष्ठति तत्सखाः // 125 उपलक्ष्य निजं मित्रं, साश्रुदृक् मणिकंडलम् // सुहृत् कुरूपो वृत्तांतं, बभाषे शापमोक्षयोः॥ SV For Private and Personal Use Only

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