Book Title: Gunvarma Charitra
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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / श्रुत्वेति स परिभ्राम्यन्नाययौ नगरं तव // ज्ञात्वा दोहदवृत्तांतं, पुनर्मित्रांतिकं ययौ // गुण० वामनत्वकुरूपत्वमोक्षोऽत्रैव भविष्यति // इति तेन सामानीय, स्थापितोऽयं पुरे तव // चरित्र / 137 मणिकुंडलसांनिध्यात्, कार्य कृत्वा ततस्तव // वामनत्वकुरूपत्वमोक्षं पाप क्षणादसौ // सिंहारोपे प्रियायास्ते, वामनत्वमसौ जहौ // श्यामायाः करसंश्लेषे, कुरूपत्वं च सोऽमुचत् / सोऽहं रत्नाभनामास्मि, खेखरो निजरूपभाक् // भहिलस्कंदिलाद्यं यत्तत्सर्व कल्पितं ममा | उत्तमानां हि सांगत्यादुत्तमत्वं भजेन्नरः // सुवर्णचूर्णसंयोगालोहं भवति कांचनम् // // इत्युक्त्वा निजवृत्तांतं, प्रीणिताशेषसज्जनः // भूपतेराग्रहात्तस्थौ, कियत्कालं स खेचरः / / नुज्ञाप्य महीनाथमन्येयुः श्यामया सह // कृत्वा विमानमारुह्य, ययौ वैताढयपर्वतम् // संपूर्णदोहदा सेयमित्थं देवी यशोमती // समये सुषुवे पुत्रं, पवित्रद्युतिशालिनम्।।२५॥ अतुच्छमुत्सवं कृत्वा, सर्वत्र नगरे निजे // सिंहनाद इति प्रीत्या, तस्मै नाम ददौ पिता * कलाकलापकौशल्य-वल्लीवासमहीरुहः॥ लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्यमाप सः // 35 // // 13 // / ततो विजयसेनाख्यो, विजयायाः सुतोऽभवत् // क्रमेण ववृधे सोऽपि, कलालावण्यबंधुरः / / For Private and Personal Use Only

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