Book Title: Granth Pariksha Part 01 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 5
________________ EEN . ग्रन्थ-परीक्षा उमास्वामि-श्रावकाचार । - -- जनसमाजमें उमास्वामि या 'उमास्वाति' नामके एक बड़े भारीः "विद्वान आचार्य होगये हैं, जिनके निर्माण किये हुए तत्त्वार्थसूत्रपर सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक और गंधहस्तिमहाभाष्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण बड़ी बड़ी टीकायें और भाष्य बन चुके हैं । जैन सम्प्रदायमें भगवान् उमास्वामिका आसन बहुत ऊँचा है और उनका पवित्र नाम बड़े ही आदरके साथ लिया जाता है । उमास्वामि महाराज श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके प्रधान शिष्य कहे जाते हैं और उनका अस्तित्व विक्रमकी. पहली शताब्दीके लगभग माना जाता है । 'तत्त्वार्थसूत्र' के सिवाय, " भगवत उमास्वामिने किसी अन्य ग्रंथका प्रणयन किया या नहीं ? और यदि किया तो किस किस ग्रंथका ? यह बात अभीतक प्रायः अप्रसिद्ध । है । आमतौर पर जैनियोंमें, आपकी कृतिरूपसे, तत्त्वार्थसूत्रकी ही सर्वत्र प्रसिद्धि पाई जाती है । शिलालेखों तथा अन्य आचार्योंके बनाए हुए . ग्रन्थोंमें भी, उमास्वामिके नामके साथ, 'तत्त्वार्थसूत्र' का ही उल्लेख मिलता है। * * यथाः" अभूदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी। . सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुंगवेन ॥"" -श्रवणवेल्गोलस्थशिलालेखः । " श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । .. यन्मुक्तिमार्गाचरणोद्यतानां पाथेयमध्ये भवति प्रजानाम् ॥” -वादिराजसूरिःPage Navigation
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