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४२ गणितानुयोग : प्रस्तावना
अब यह निकालना है कि सूर्य कौन से नक्षत्र के साथ योग द्वितीय पूर्णिमा-पुनः प्रश्न है कि पाँच संवत्सरों में दूसरी करता हुआ प्रथम चन्द्र मास समाप्त करता है । यह निकालने को पूर्णिमा होते चन्द्र कौन से नक्षत्र के साथ योग करेगा? दूसरी ध्रुवराशि को १ से गुणा कर प्रथम ध्र व राशि से भाजित उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के साथ योग करके दूसरी पूर्णिमा करते हैं । यह विधि बासठिये भाग निकालने की विलोम है । भाग
.....१४. ६४ नास्ति शून्य है, तब मुहूर्त करने को ६२ से भाग देते हैं जिससे २७+ + मुहूर्त शेष रहे तब दूसरा मास सम्पूर्ण ८८५ मुहूर्त तथा भाग होते हैं । अब प्रथम युग बैठने के समय होता है । सूर्य के साथ पुष्य नक्षत्र १३८ मुहूर्त में पूर्ण होकर १३६वें मुहूर्त नोट---दृष्टव्य है कि सू०प्र० टीका श्री घासीलाल जी म०, भाग से २६४ मुहूर्त पर्यंत योग करके नक्षत्र की समाप्ति होती है।
२ पृ० २४४ आदि पर भिन्न द्वारा ही उपरोक्त प्रथम पूर्णिमा इसलिए पुष्य नक्षत्र से गिनती करते हैं। प्रथम पूर्णमास सम्पूर्ण
सम्बन्धी गणनाएँ धूलिकर्म द्वारा प्रस्तुत की गयी हैं। पाटी गणित और धूलि (रेत) पर गणित का उच्चरूप हल किया
जाता था। किसी तख्ते अथवा भूमि पर रेत बिछाकर करता है। पुनः मघा नक्षत्र ८६७ मुहूर्त में सम्पूर्ण होता है ।
गणित किया जाता था। यह गणित अरब देशों तक भारत
से पहुँचा था। इसलिए ८८५ मुहूर्त एवं 2 मुहूर्त में से ८६७ मुहूर्त घटाने पर
यहाँ इस टीका में प्रस्तुत दूसरी पूर्णिमा सम्बन्धी प्रश्न
को हल किया गया है :-- १८ मुहूर्त + मुहूर्त पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के साथ योग करते
पूर्व विधि से यहाँ भिन्न विधि ली गई है, जहाँ ध्रुव राशि हैं। यह पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र ४०२ महर्त का होता । इसमें से तो वही लेते हैं, किन्तु गणना दूसरी विधि से करते हैं :
होते सूर्य ८८५ मुहूर्त एवं ३: भाग मुहूर्त तक नक्षत्र के साथ योग
३०
३०
१८ मुहूर्त घटाने पर ३८३ - पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के शेष
यहाँ पर भी ध्रुव राशि ६६+
+
६२x६७मुहूर्त प्रमाण
२
२४
४७.
३
8-1
रहते हैं । इस समय सूर्य प्रथम पूर्णमास सम्पूर्ण करता है। लेते हैं।
सूर्य नक्षत्र ३८३२ मुहूर्त शेष रहे तब चन्द्र नक्षत्र कितना दूसरी पूर्णिमा की गणना हेतु इस ध्रुव राशि में २ का गुणा शेष रहता है ? इसके बासठिया भाग ३८३४६२+ (३२)= करने पर १३२+ + मुहूर्त प्राप्त होते हैं । इसमें २३७७८ होते हैं । अब अनुपात लेते हैं--पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र ३० मुहूर्त तक चन्द्र के साथ योग करता है । इससे इसे ३० से गुणित से पूर्व प्रतिपादित युक्ति से अभिजित नक्षत्र का शोधनक करने पर २३७७८४३० = ७१३३४० । पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र ४०२ मुहूर्त तक सूर्य के साथ योग करता है। इससे ५१३३४० 5+ मुहूर्त घटाते हैं तो १२२+-+
६२ । ६२४६७ को ४०२ द्वारा भाजित करते हैं तब १७७४ १६. प्राप्त होते मुहूर्त प्राप्त होते हैं । अब ज्ञात है, कि अभिजित के पश्चात् चन्द्र
के साथ श्रवण ३० मुहूर्त, धनिष्ठा ३० मुहूर्त, शतभिषा १५ मुहूर्त, हैं। इसके सढसठिया भाग करने को ६७ से गुणित करते हैं, पूर्वाभाद्रपद ३० मुहूर्त और उत्तराभाद्रपद ४५ मुहूर्त रहते हैं । जिससे १६२४६७ = १२८६४ होते हैं। इसे पुनः ४०२ का भाग देने पर ३२ भाग प्राप्त होते हैं । १७७४ के बासठिया भाग इनका योग १५० मुहूर्त होता है जिसमें से १२२+ +: के मुहूर्त बनाने पर २८ मुहूर्त तथा ३८ शेष रहते हैं। इससे
१४६४ चन्द्र नक्षत्र सूर्य के साथ २८++३२ मुहूर्त शेष रहने घटाने पर २७+5+ मुहूर्त शेष रहने पर चन्द्र पर प्रथम पूणिमा सम्पन्न होती है।
दूसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है।
६२ '६२४६७