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( ३६ ) ज ऊगियो रे, सुरतरु मोस्यो रे श्रज ॥ च० ॥ ६ ॥ पूर्वज तूता पुण्यथी रे, वांद्या वीर जिणंद ॥ सुणी दे शना जगवंतनी रे, हरख्यां नर नारी वृंद ॥ च० ॥७॥ वेला चतुराई चित्त में रे, संजारे दिवस ने रात्र ॥ त्रिशलानंदन देखतां रे, पवित्र थयां मोरां गात्र ॥ च० ॥ ८ ॥ सेवक लक्ष्मीसूरि तणो रे, प्रणमे नाए उ दार | वीर प्रभुजी ने वांदतां रे, सफल कियो व तार ॥ च० ॥ एए ॥ इति ॥ २६ ॥
॥ अथ षडावश्यकसूत्रनी गहूंली सत्तावीशमी ॥ ॥ अहो मुनि चारित्रमां रमता, श्री जिनत्राणा सुधी धरता, क्रियामारगमां अनुसरता ॥ अहो ॥ १ ॥ षडावश्यक सूत्रतणी रचना, ते सांजलो जवि एक म ना, वाणी अमृत रस करना ॥ अहो० ॥ २ ॥ प्रथम सामायिक जे दाख्युं, बीजुं च विसवो जांख्युं, तृ तीय वांदण दिल राख्युं ॥ अहो || ३ || प्रतिक्रमण चोथे सुणतां, काउस्सग्ग पांच अनुसरतां, बछे पञ्चरकाण करतां ॥ अहो० ॥ ४ ॥ षड्विध आवश्यक जे धारे, शुभ परिणामें अवधारे, श्री जिन मारग अजु वाले ॥ अहो ॥ ५ ॥ स्थापना ज्ञानतणी मांगो, ममता माया पूरे बांगो, तो शमतावृक्ष होये जामो
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