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( ८४ ) माँ जाणे कोइ सुजाण, नृप पूढे रे मुनि सुव्रत जिन राय, प्रतिबोध्यो रे कोइ जीव एणे वाय, देवे दीगे रे एक तुरंग धर्म ध्याय ॥ प्र० ॥ २ ॥ असण लेइ प्रभुके पाय, पोतो सुरलोकें दिल लाय, तीरथ थापे मन उमाय, संघ सेवे रे दूरदेशथी यय, जावना जा बेरे तजी विषय कषाय, दुःखम कालें रे ए महिमा गवराय ॥ प्र० ॥ ३ ॥ नाटक नाचे नव नव रंग, करे अशुभ करमनोजंग, साचो समकित गुणनो रंग, सू त्रै दीसे रे सूरियाज सुरनो अधिकार, पूजा कीधी रे सतर जेद सुखकार, शंका टाले रे नविक जीव निर धार ॥ प्र० || ४ || पद्मावतीनो नंदन महानाग, दा खे शिवगति पूरिनो माग, जगमांहे कहेवाये वीतराग, रायो रे जिनशासन सुलतान, माग्या दीजें रे मनवंबित प्रभु दान, वांबा कीजें रे विबुध विमल शु न ध्यान || प्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ७० ॥
॥ अथ गहूंली एकोतेरमी
॥ वीरजी घ्याया रे गुणशीलवनके मेदान | ए देशी ॥ ॥ जवियण वंदो रे चोवीशमो जिनराय, सुगति थापे रे टाले कुगति कुठाय ॥ ए टेक || पावन देश तर करता खाम, विचरंता वली गामो गाम, पातक
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