Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 130
________________ (१२) मारो वरताय रे ॥ ए ॥ स० ॥ सधवा स्त्री गहूंली क हाडे रे || स० ॥ मुक्ताफलशुं वधावे रे | स० ॥ नागर पानासुत गावे रे | स० ॥ मगन लागे मुनि पाये रे ॥ स० ॥ पास जिनंदने पूजो रे ॥ स० ॥ दुनियामां दे व न डूजो रे ॥ १० ॥ इति ॥ १११ ॥ ॥ अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराजनी ॥ ॥ गहूंली एकशो बारमी ॥ ॥ हो मुनिवरजी, तुज यति मीठी वाणी मुज म नमां वसी ॥ एकखी ॥ तमें जविक जनोने बोधों बो, मुक्ति तणो मारग शोधो हो, वलिं काम कषायने रोधो हो । हो मुनि० ॥ १ ॥ तमें जवसागरथी तरि या बो, अगणित गुणोथी जरिया हो, वली ज्ञानतरं गना दरिया हो । हो मुनि० ॥ २ ॥ तुम दरिसनथी दूरित जावे, सवि जन वलि सुख संपति पावे, नर नारी मलीने गुण गावे ॥ हो मुनि० ॥ ३ ॥ तुम मु ख कमलाकर शोने बे, जविजन जमराने थोने बे, मन जुक्तिरमामां लोने बे ॥ हो मुनि० ॥ ४ ॥ एवा मोहनलालजी मुनिराया, तजी चित्तथकी जेणें मा या, हिरालाल कहे में गुण गाया । हो मुनि ॥ ५ ॥ } Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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