Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१३१) ॥अथ मुनिराज श्री खांतिविजयजी माहाराजनी॥
गईली एकशोने चौदमी ॥ ..... ॥ नेक नजर करो नाथजी ॥ए देशी॥ खांतिविजय मुनि वेदियें, जेथी नवतरु कंद निक दीयें जीहो, खांतिविजय मुनि वंदीयें |ए आंकणी। जेनी अमृत धारा सारिखी, गुणखाणी वाणी वखा पीयें जी हो ॥ खांति ॥१॥ नित्य बह अहम तप स्या करे, जेनुं सद्याय ध्यानमा ध्यान जीहो ॥ खां ति०॥२॥जेनां ज्ञान तणो महिमा घणो, मानु केव ली हुं कलिकालमां जी हो ॥खांति० ॥३ ॥ जेणे ममता तजी संसारनी, एक मुक्तितणी ममता करी जी हो ॥ खांति०॥॥ हिरालाल कहे मुनि ते नमो, जेथी पाप जशे सवि पूरथी जी हो । खांति ॥५॥ ॥अथ माहामुनिराज श्रीवात्मारामजी माहाराजनी
॥ गईली एकशो ने पंदरमी॥ ॥सांजलजो रे मुनि संयमरागी, उपशम श्रेणें चडि या रे ॥ए देशी ॥ नQ थयु रे मारे सुगुरु पधास्या, जिन आगमना दरिया रे ॥ ए आंकणी ॥ ज्ञान तरंगें लेहेरो लेता, ज्ञान पवनथी नरिया रे ॥ नटुंग ॥ १॥ आज कालमा जे जिन आगम, दृष्टिपंथ
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146