Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१३७) ॥१॥ शेव लाडणशा कुलें थाया रे, माता जुमा बाश्ना जाया रे, तेथी गुरुजीशुं अधिकरी माया ।। सू० ॥ जु०॥ सू०॥॥ करतां एणे देश विहार रे, होशे पुण्यजी खान उदार रे, मिथ्यात्वी होशे व्रत धार ॥ सू० ॥जु०॥ सू०॥३॥ नुजनगरमांहे थ धिकारी रे, शेठ शिवजीशा समकेतधारी रे, ते तो वाट जुवे डे तमारी ॥ सू०॥४०॥ सू०॥४॥ शेठ सामण ने काटीया उसवाल रे, वोरा चुखड ने वमो डा उदार रे, जुजनगर देवाणी मेवाल ॥ सू० ॥ जु ॥सू०॥५॥रुचिवंती सुश्राविका यावे रे, श्रझा स मकित वस्ति बनावे रे, गुरु सन्मुख मोतीयें वधावे ॥ सू०॥जु०॥ सू०॥६॥ हर्ष झझिने सुख सवाई रे, अचलगढमां नित्य नित्य था रे, सान्निध्यकारी ने माहाकाली ॥ सू०॥ जु०॥ सू०॥७॥ गुरु चारे चोमासां थाया रे, सब्धिये गौतम शकि पाया रे, मुक्तिसागर सूरि सवाया ॥ सूरीश्वर विनति अवधा रो रे ॥जु० ॥ सू० ॥ ७॥ इति ॥ ११ ॥
॥गईली एकशो ने वीशमी॥ ॥ जंगमतीर्थ विचरंता, करता देश विहार ॥ न 10 जीव प्रतिबूकवा, करता जग उपकार ॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146