Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 140
________________ (१३) ते मुनिवर तारे तरे ॥ ए श्रांकणी ॥ समिति गुप्ति सू धी धरे, पाले प्रवचन माय ॥ अजयदान मुनिवर दिये, पाले जीव काय ॥ ते०॥॥ पंच माहावत धारता, पंचाव पच्चरकाण ॥ अष्ट मदने मुनि गा लता, पाले पंचाचार ॥ ते. ॥३॥ द्वादश पडिमाने शोधता, करता आतमशोध ॥ तप जप करे मुनि श्रा करा, काढे कमेनुं सूड ॥ते.॥४॥सम वाणं करे गोचरी, पाले दोष विशेष ॥ उंच नीचकुल जोवतां, नहिं लोजनो लेश ॥ ते ॥५॥ केशी गणधर पधारि या, सावबिनयरी उद्यान ॥राय परदेशी माहा पापी यो, धरे साधुनो द्वेष ॥ ते० ॥६॥प्रश्न पूछे मुनिवर प्रत्यें, जीव अजीव विचार ॥ स्वर्ग नरक जाणुं नहीं, न गणुं पुण्य ने पाप ॥ ते॥७॥ नय उपनय प्रश्न पूरिया, प्रतिभ्यो नूपाल ॥ एक अवतारी ते थयों, पाम्यो मुक्ति माहाराज ॥ ते०॥॥ इति ॥१२॥ ॥गहंली एकशो ने एकचीशमी। ॥श्राज सखि गुरु वंदन करीयें, वंदन करीये तो नव जल तरिये हो साम, श्राज सखि गुरुवंदन करी ॥ए आंकणी ॥गछपति गणधरना गुण गाऊं, हरख री मनमांहे हो साम । आज० ॥ १ ॥ सूरि F Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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