Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३४) पंचाचारने पालता, टालता कर्मनो चार हो ॥ सू० ॥ स०॥ मादिक तप करे, वारे विषय विकार दो ॥ सू० ॥ ५ ॥ स० ॥ गंगाजलसम निर्जला, गुण छत्रीशना धार हो ॥ सू० ॥ स० ॥ रत्नसागर सूरि पटधरु, लब्धिता जंकार हो || सू० ॥ ६ ॥ स० विचरंता गुरु श्राविया, सुंथरी शहेर मजार हो ॥ ॥ सू०॥स०॥ सुरगुरुसम वाणी वाणी सुणी, हरख्यां सवि नर नार हो ॥ सू० ॥ ७ ॥ स० ॥ उमण । शशें पिस्तालीशें, माहाशुदि त्रिज रविवार हो ॥ सू० ॥ ॥ स० ॥ जाग्यवंत दीक्षा लिये, संघ चढविध मनो हार हो | सू० ॥ ८ ॥ स० ॥ दीक्षामहोत्सव हर्ष क री, पामी हर्ष उल्लास हो ॥ सू० ॥ स० ॥ वासदेप सूरियें कस्यो, देवा मुक्तिनो वास हो ॥ सू० ॥ ए ॥ सं० ॥ चव रंग वधामणां, हूवे जय जयकार हो ॥ सू० ॥ स० ॥ चिहुं गति पूरण साथियों, करे सो दागण नारि हो || सू० ॥ १० ॥ स० ॥ गुरुगुप गहूं ली गावतां, पातक दूर पलाय हो ॥ सू० ॥ स० ॥ पाटण रहेवासी शामजी, सूरितला गुण गाय हो सू० ॥ ११ ॥ इति ॥ ११६ ॥
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