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(१३५) मां आवे रे ॥ गहन गहन एहना जे अर्थो, प्रगट करीने बतावे रे ॥न॥२॥ शक्ति नहिं पण नक्ति तणे वश, गुण गावा उखसावु रे ॥ कर्णामृत गुरु चरित्र सुणावी, आनंद अधिक वधावू रे ॥ ज० ॥३॥ दक्षिण दिशि जंबुद्धीपमाहि, एही नरत म कार रे ॥ उत्तर दिशि पंजाब देश जिहां, लेहेरांगाम मनोहार रे॥ ज०॥॥४॥ क्षत्रियवंश गणेशचंद घर, जन्म लिया सुख धामें रे ॥ रूपदेवी कुदिशुक्तिमां, मुक्ताफल उपमाने रे ॥ न० ॥ ५ ॥ लघुवयमां प ण लक्षणथी बहु, दीपंता गुरुराया रे ॥ संगतिथी म सीढूंढक जनने, ढुंढकपंथ धराया रे ॥न॥६॥ संवत ओगणीशे दशमांही, उज्ज्वल कार्तिक मा से रे ॥ पंचमीने दिवसे लिए दीदा, जीवनराम गुरु पासे रे ॥ १० ॥ ७॥ ज्ञान नएया वली देश फि ख्या बहु, जूनां शास्त्र विलोकी रे, संशय पडिया गुरु में पूछे, प्रतिमा केम उवेखी रे॥ न ॥७॥ उत्तर न मिख्या जब गुरुजीने, ज्ञान कला घट जागी रे ॥ मुमति सखी घट आय वसी जब, ढपंथ दिया त्या गीरे ॥ ॥ए॥ धर्म शिरोमणि देश मनोहर, गुर्जर नूमि रसाली रे ॥ ज्यां आवी सुविहित गुरुपा
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