Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ (१३०) ॥ अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराजनी॥ ॥ गहूंली एकशोने तेरमी।। ॥ मुनिवर संयममां रमता, शिवपुर जावानो ख प करता, अहो मुनि संयममां रमता ॥ ए आंकणी । मुनिवर विचरंता श्राव्या, षट चेला साथे लाव्या, मुंबना संघने मन जाव्या ॥ मुनिवरण | शि०॥ अहो ॥१॥ मुनिवर संयममा शुरा, मुनिवर कि रियामां पूरा, परिणामें मुनि अति रूडा ॥मुनि ॥ शि० ॥ आ॥ २ ॥ मुनिजीनी देशना बहु सारी, जविजनने लागे प्यारी, प्रतिबोध पाम्यां नर नारी ॥ मुनि ॥ शि० ॥ अ०॥३॥ मुनिवरे लाल घणा ली धा, श्रीसघनां कारज अति सीधां, उपकार एवा माहा मुनिये कीधा ॥ मुनि०॥ शि०॥ १०॥४॥ निजीनुं नाम घणुं सारू, मोहनलालजी लागे प्यार ॥ जिनशासन घणुं अजवाब्युं ।।मु०॥ शि० ॥ अ० ॥५॥जे मनिवरना गुण गावे, शिवपुर नगरी वेगे जावे, मगन कहे मुनिवरने ध्यावे ॥ मु०॥ शि० ॥ ॥ अहो०॥६॥ इति ॥ ११३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146