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(१२०) ॥सम्॥ शास्त्र तणे अनुसारें रे ॥२॥स॥ स मता गुणना दरीया रे ॥ स०॥ क्रिया पात्रना जरी या रे ॥स०॥ ज्ञान तणा भंडार रे ॥ स०॥ क हेता न थावे पार रे ॥३॥स ॥ मधुरी वाणी ये लांखे रे ।। स०॥ संघ स्वाद सर्वे चाखे रे ॥स॥ प्रश्न व्याकरण वंचाय रे ॥स॥ आश्रव संवर अ र्थ थाय रे ॥४॥स॥ उपर चरित्र वंचाय रे ॥ ॥ स ॥ पृथ्वीचंद कुमार रे ॥स०॥ सुणतां वैरा ग्यवंत थाय रे ॥स०॥ अज्ञान मिथ्याय हगवेरे ॥५॥ स ॥ षट चेला तमें जाणो रे ॥ स ॥ विनय गुणनी खाणो रे ॥ स ॥ जोबन वयमा ठे सरखा रे । स० ॥ वंदो पूजो ने हरखो रे ॥६॥ सम् ॥ जंगम तीरथ कहीये रे॥ स०॥ वंदीने पा वन थश्य रे ॥स॥ संघना पुण्यें अहीं आव्या रे ॥ स । जैनधर्मने दीपाव्या रे ॥ ७॥ स ॥ नाव सहित नक्ति करजो रे ॥ स॥ पुण्यनी पोठी तमें जरजो रे ॥ स०॥ नरतबाहु पेरें तरशो रे ॥स ॥ समुपार उतरशो रे ॥ ७॥ स० ॥ व्रत पञ्चकाण घणां थाय रे ॥स०॥ सात क्षेत्रे धन खरचाय रे ॥स० ॥ देहरे देहरे उडव मंमाय रे ॥ स०॥ चोथो
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