Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 127
________________ (१५६) ॥ गईली एकशो दशमी॥ .. ॥ साहेली महारी राजगृही उद्यान, प्रजुजी समो सत्यारे लोल ॥सा०॥ गणधर मुनिवर सहस, चौद शुं परिवस्या रे लोल ॥ सा॥ करता जवि उपकार, दया मन धारीने रे लोल ॥सा ॥ सकल जंतु प्रति पाल, बिरुद संजारीने रे लोल ॥१॥ सा ॥ ली धो डे अवतार, जगत प्रतिबोधवा रे लोल ॥सा॥ चउगश् फुःख जंजाल, प्रतिमल रोधवा रे लोल ॥सा० श्रणहूंते सुरको डि, सेवामां नित्य रहे रे लोल ॥सा॥ कर जोडी मोडी मान, थाणा शिर निर्वहे रे लोल ॥ २॥ सा ॥चार निकायना त्रिदश, मली त्रिगडो करे रे लोल ॥ सा ॥ चार गाउ परमाण, चतुर्मुख उच्च रे रे लोल ॥ सा॥ जिनमुख पूरव पाय पीठ, बिराजे गणधरू रे लोल ॥ सा॥था पर्षदा सुरराज, चार तिहां नरवरू रे लोल ॥३॥ सा॥ कहे वनपाल जूना थने, नाथ जी पधारिया रे लोल ॥ सा०॥ मगधाधि पलूपाल, नुजाल मनरंजीया रे लोल ॥सा ॥ देश वधामणी सार के, जिनगुण गावतो रे लोल ॥सा॥ कंचन रजत ते आठ, पूरथी वधावतो रे लोल ॥ ४ ॥साणा हय गय रह जड चतुरंग, सैन्य नरनारशुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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