Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 121
________________ (१२०) पूरती, मुक्तिपदनी निशानी ॥धन ॥५॥ चिहुं ग ति उःखडां चूरती रे, ग्वती पंच रतन्न रे ॥ प्रजुगुण गाती पाप पखालती, प्रणमी थणती धन्य ॥धन। ॥६॥ मुक्ताफल वर थाल वधावी, लेती समकित रंग रे ।। जगगुरुनो विनय साचवती खेमें, धरती ध्या न तरंग ॥ धन०॥७॥ इति ॥१४॥ ॥अथ गढूली एकशो ने पांचमी॥ ॥ गोकुल मथुरां रे वाला ॥ ए देशी ॥ महासेन वनमा रे थावे, तिहां श्रीवीर जिणंद सुहावे ॥ समवसरण तिहां सुर विरचावे, चोश नमे अर्चावे ॥ महा॥१॥ शम दम शांत गुणे ते नरिया, जाणे जंगम नाणना दरीया ॥ चौद सहस मुनिशुपरवरिया, राजगृही नयरी संचरीया ॥ महा० ॥२॥राजा श्रेणिक वंदन आवे, चेलणा राणी साथे सुहावे ॥ बारे पर्षदा वंदे नावे, देशना सुणी मन रंज न थावे || महा०॥३॥ गुरुमुख आगल गहंली की जें, नरजव पामी लाहो लीजें ।। कुंकुम घोली मोतीडे वधावे, जावें समकित शुरुज थावे ॥ महा०॥४॥ श्री चोदय रत्नसूरिंद, निर्मल उग्यो पूनम चंद ।। जाणे जंगम मोहन वेली, टोलें मलि मंगल गाय सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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