________________
(१२५) संचरिया ॥ चा॥६॥ विजयराज सूरीश्वगन्धराया, पट्टोधर चंडोदय गाया ॥ जिनवाणी सुधारस पाया, नवि जीवें निर्मल गुण गाया ।। चा ॥७॥१६॥ ॥अथ गईली एकशोने सातमी॥ थारा महेला उपर मेह ऊरूखे विजली ॥ हो खाल ॥ ज०॥ए देशी॥ ॥शोल करी शणगार, सोहागण नामिनी हो लाल ॥ सोहागण जामिनी ॥ उढी नवरंग घाट, चाले गज गामिनी हो लाल॥ चा॥ शीलवती कर थाल, ग्रही कुंकुम जरी हो लास ॥ ग्रही०॥ श्रावे समोसरण मांहे, हैये उलट धरी हो लाल ॥हैये ॥१॥ सिंहा सन मणि पीठ, विराजत जगधणी हो लाल ॥ विराण ॥ वीरजिनेश्वर वाणि, वखाणे अति घणी हो लाल ॥ वखाण ॥ षट घटि पर्यंत, प्रकाशे परवडो हो लाल ॥प्रका॥ नैगम अर्थ प्रवाह, त्रिजुवन दीव डो हो लाल ॥ त्रिजु॥२॥ कुमति मत अंधकार, हरे ज्यु दिनमणि हो लाल ॥ हरे०॥ पार्षद हर्षित थाय, लहे जिम सुरमणि हो लाल ॥ खदे॥ सुणी प्रजुनी वाणी, करे गुण गहूंबली हो लाल ॥ करे०॥
आढो चोखा मान, सोपारी उजली हो लाल || सो पा० ॥३॥ वधावे मुनिराय के, दिसमांहे हरखती
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org