Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 124
________________ (१५३) हो लाल के ॥ दिल०॥ गुरु मुख पूनमचंद के, नय णे निरखती हो साल के ॥ नय॥ पामी स्त्री अव तार, गणे ए सारता हो लाल | गणे॥ खारा समु ७ मांहे, ए मीठी वारता हो लाल ॥ए मीठी ॥४ ॥ गोरी गावे गीत, गुरु गुण रस चढी हो लाल ॥ गुरु०॥ राग द्वेष दोय चोर, संघातें श्रति वढी हो लाल ॥ संघातें ॥ करे प्रशंसा देव के, धन धन ए वशा हो लाल के ॥धन॥ मनुजपणानो लाहो, ली ये ले शुनदशा हो लाल के ।। लीये डे ॥५॥ पधारे देवदें, तीर्थंकर मलपता हो लाल ॥ तीर्थ ॥ श्रा वी बेसे पदाण, श्रीगौतम दीपता हो लाल ॥ श्री गौ० ॥ सूत्र तणी जलधार, वरसावे वेगशुं हों लास ।। वरसावे ॥ विबुध दर्शन वृक्ष, वधारे नेगशुं हो लाल ॥ वधारे ॥६॥ इति ॥१७॥ ॥श्रथ पर्दूषणस्तुप्ति एकशो आठमी॥ ॥ परव पजूसण पुण्यं पामी, श्रावक करे ए करणी जी॥ आये दिन आचार पलावे, खमण पीसण ध रणी जी ॥ सूक्ष्म बादर जीव न विणासै, दया ते म नमा जाणे जी ॥ वीरजिनेसर नित पूजीने, सूधी समकित आणे जी ॥१॥ व्रत पाले ने धरे ते शुफि, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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