Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(११७) निझा पंच तजेरी ॥ दशविध सामाचारी, पटविध ज यणा नजेरी ॥३॥ उपकारें धरे बार, जावना तप पडिमारी ॥ निःकारण जगबंधु, रवि शशी मेह समा री॥४॥ कंचन कमल विचाल, बेसी धर्म कहेरी ॥ जेहथी नवियण लोय, आतम तत्त्व लहेरी ॥५॥ कोणिक नूपति नारि, घोयली गेली करेरी ॥ माणक मोति वधाय, पुण्य नंमार नरेरी ॥६॥ जिनशासन नी जक्ती, करतां पाप हरेरी ॥ सोहव सरिखे साद, घोयली गीत नणेरी ॥७॥ इति ॥ १० ॥ ॥अथ गहूखी एकशोनेत्रणमाडेलालनी देशी॥ ॥ज्ञानादिक गुणखाण, राजगृही उद्यान ॥ गणधर लाल ॥ सोहम सामी समोसत्या जी ॥१॥ कंचन गौर शरीर, वाणी गंगा नीर ॥ ग॥ त्रिहुं पंथें प सरे सदा जी ॥२॥ अंग उपांगद बार, दश विध रूचिनो धार ॥ ग ॥ फुगविध शिक्षा उपदिसे जी ॥३॥ तेर क्रिया व्रत बार, गिहि पडिमा अगीया र ॥ ग ॥ श्रावक गुण नेद सिझना जी ॥४॥ विनय वैय्यावञ्च कल्प, धरे दश विध अकल्प ॥ गण॥ वंदन दोष विकथा तजे जी ॥५॥ कुंकुम रोल कचोल, गहूंली करे रंगरोल ।। ग० ॥ अक्षत श्री
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/78877e58dd18966540069245182e5d7966e972663b23885e2d583ef8c72d03f7.jpg)
Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146