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(७) यारे॥ स०॥ पतित पावन पीयरीयारे॥ स० ॥१॥ ॥ ए आंकणी ॥ स० ॥ श्रेणिक हरख्यो थावे रे ॥स ॥ समकित दायिक जावे रे ॥ स ॥ कंचन वरणी नार रे ॥ स०॥ पंचसया परिवार रे ॥ स० ॥२॥ स ॥ धर्मदेशना जिन नांखे रे ॥ स० ॥ नवपद महिमा दाखे रे ॥ स०॥ नवपद आतम जाणो रे ॥ स० ॥ बातम नवपद वखाणो रे ।। स०. ॥३॥ स०॥ नवतत्व नूषण सार रे ॥ स०॥ रत्न रकेबी उदार रे ॥ स ॥ श्रवण मनन बहु मूल रे ॥स॥पहेरी वस्त्र अनुकूल रे ॥स ॥४॥ स॥ किया कुंकावटी हाथ रे ॥स ॥ मन निर्मलने पाथ रे ॥ स | जिनगुण कंकु घोली रे ॥ स ॥ मली सहीयरनी टोली रे ॥स० ॥ ५ ॥ स ॥ आणा तिलक धरावे रे ॥ स० ॥ चेलणा गईली बनावे रे ॥ स० ॥ एणी परें गढूंसी कीजे रे ॥सण ॥ नरजव लाहो लीजें रे ॥ स ॥ ६ ॥ स० ॥ विषय ते विष सम जाणो रे || स०॥ बोले त्रएय नुवननो राणो रे ॥ स०॥ शिवपुर सासरे चालो रे ॥ स ॥ सुनवमांहे माहालो रे ॥ स० ॥७॥ सम् ॥मणि उद्योत गुरु मलीया रे.॥ सए ॥ आज
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