Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 115
________________ (११४) मन रंगशु, सुणीयेंजी सूत्र विशाल मोरी ॥ चण ॥३॥ धवल मंगल गावे गोरडी, वाजंते ढोल निशा न ॥ मोरी० ॥ ललि ललि कीजें जी सुबणां, धरता जी धर्मनुं ध्यान ॥ मोरी ॥ च०॥४॥ नगर लोक स हु हर खियां, वाध्योजी धर्मनो रंग ॥ मोरी०॥ वीर शासन माहे एहवा, मलूक नाव अन्नंग । मो० ॥५॥ ॥अथ चकेसरी मातानी गरबी नवाणुंमी॥ ॥अलबेली रे चक्केसरी मात, जोवाने जश्ये ॥जेह नां सोवन वर्णां गात्र, जोवाने जश्ये ॥ ए आंकणी ॥जोवा जश्ये पावन थश्ये, देखी मन गहगहीयें रे ॥ एक तीरथ बीजी जगदंबा, वंदी संपत लही यें ॥ जो ॥०॥१॥श्राव जुजाली अति लटका ली, मृगपति वाहन वाली रे ॥ जिनगुण गाती खे ती ताली, तीरथनी रखवाली ॥ जो ॥ अ॥२॥ श्री सिफाचल गिरि पर गाजे. देवी देव समाजे रे रंगित जाली गोख बिराजे, घडी घडी घडीयाला का जे ॥ जो ॥ अ॥३॥ घाटडी लाल गुलाल सोहा वे, पीला राता चरणा रे ॥ बहु शोने ले जग जननी ने, केशर कुंकुम वरणा ॥जो ॥ अ॥४॥ खलके कर कंकणने चूडी, नवसरो हैयडे हार रे ॥ रत्नजडि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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